JOLLY LLB 3 review in hindi



# “Jolly LLB 3” समीक्षा


**निर्देशक**: सुभाष कपूर

**स्टार कास्ट**: अक्षय कुमार, अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला, हुमा कुरेशी, अमृता राव, गजराज राव आदि ([Navbharat Times][1])


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### कहानी और विषय


“Jolly LLB 3” कोर्टरूम ड्रामा शैलि में बनी एक ऐसी फिल्म है, जो हास्य, व्यंग्य और सामाजिक न्याय की मांग को समान रूप से उठाती है। पिछले दोनों भागों की तरह इस बार भी मुख्य फोकस है कानून व्यवस्था और न्याय के सिलसिले पर — खासकर उन अनदेखे पहलुओं पर, जिन्हें आम जनता शायद ध्यान न देती हो। ([India Today][2])


फिल्म की कहानी दो वकीलों — अक्षय कुमार और अरशद वारसी — के बीच के विरोध से शुरू होती है। ये दोनों अपने-अपने तर्कों के साथ न्यायालय में खड़े होते हैं। बीच में न्याय व्यवस्था की खामियों, सामाजिक दबावों और व्यक्तिगत इमोशन का मिश्रण आता है। इसके साथ ही कुछ पात्र विशेष रूप से प्रभावशाली हैं — जैसे सौरभ शुक्ला का जज सुंदरलाल त्रिपाठी, जो सिर्फ न्यायाधीश नहीं, बल्कि कहानी को आगे बढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन जाते हैं। ([Navbharat Times][1])


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### अभिनय और पात्र


* **अक्षय कुमार** इस फिल्म में अपेक्षित हल्के-फुल्के अंदाज़ के साथ आते हैं, लेकिन उनका किरदार सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं है। भावनाओं और न्याय की कसौटी पर जो दृश्यों की ज़रूरत है, वह निभाई गई है। ([The Times of India][3])

* **अरशद वारसी** की मौजूदगी हमेशा से ही खास रही है। इस फिल्म में उनके संवाद, उनका स्टाइल और हास्य का टच अच्छी तरह काम करता है, अक्सर अक्षय कुमार के साथ केमिस्ट्री बनाने में। ([Navbharat Times][1])

* **सौरभ शुक्ला** ने न्यायाधीश के रूप में एक ठोस भूमिका निभाई है — वो सिर्फ बैकग्राउंड में खड़े न्यायाधीश नहीं बने हैं, बल्कि उनकी मौजूदगी फिल्म को गंभीरता और संतुलन देती है। दर्शकों ने उनकी एक्टिंग की खास तारीफ की है। ([Navbharat Times][1])

* **हुमा कुरेशी** और **अमृता राव** की भूमिकाएँ अपेक्षित मानकों पर खड़ी होती हैं, लेकिन स्क्रीनटाइम और पटकथा ने उन्हें पूरी तरह से चमकने का अवसर हमेशा नहीं दिया। ([The Times of India][3])


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### निर्देशन, पटकथा और संवाद


सुभाष कपूर ने इस तीसरे भाग को ऐसा ढालने की कोशिश की है कि वह मनोरंजन के साथ-साथ संदेश भी दे। फिल्म हास्य तत्वों के ज़रिए गंभीर विषयों को सरलता से दिखाती है, और न्याय, भ्रष्टाचार, समाज की अपेक्षाएँ जैसे विषयों पर कटाक्ष करती है। ([Navbharat Times][1])


पटकथा (स्क्रीनप्ले) संतुलित है — कहीं संवादों का प्रवाह धीमा नहीं होता, तो कहीं कुछ हिस्से थोड़े लंबे हो जाते हैं। लेकिन कुल मिलाकर फिल्म का लेखन मज़बूत है, खासकर कोर्टरूम सीन और क्लाइमेक्स पर। ([India Today][2])


डायलॉग्स अच्छी तरह से लिखे गए हैं — हास्य और गंभीरता का संतुलन बनाये रखा गया है। कुछ संवाद तो दर्शकों के दिल में उतर जाते हैं। ([The Times of India][3])


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### खामियाँ


* फिल्म की लंबाई — लगभग 2 घंटे 37 मिनट — कभी-कभी कहानी को थोड़ा खींच देती है। कुछ सीन ऐसे हैं जहाँ कहानी गति से आगे नहीं बढ़ती। ([The Times of India][4])

* महिला पात्रों को स्क्रिप्ट में उतना विकास नहीं मिला जितना कि पुरुष पात्रों को। उनकी भूमिका सीमित दृश्य और संवादों तक सीमित हैं। ([The Times of India][3])

* हिस्सों में क्लिषेड / प्रत्याशित मोड़ (predictable twists) भी दिखते हैं — विशेषकर न्याय व्यवस्था और भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले दृश्यों में। हालांकि दर्शक शायद इन्हें सहज भाव से स्वीकार कर लेंगे क्योंकि शैली यही मांगती है।


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### तकनीकी पक्ष


* **निर्माण‐शैली (Production Values)**: कोर्टरूम सेटअप, बैकड्रॉप, कैमरा वर्क अच्छे हैं। फिल्म की सेटिंग्स न्यायालय, वकील कार्यालय आदि विश्वसनीय लगती हैं।

* **संगीत/बैकग्राउंड स्कोर**: संगीत उतना प्रमुख नहीं है जितना कि कहानी, लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक सीन के अनुरूप है, कुछ भावनात्मक दृश्यों को प्रभावी बनाता है।

* **विजन और छायांकन (Cinematography)**: कुछ दृश्यों में छायांकन और कैमरा एंगल ऐसे हैं कि दृश्य भावनात्मक उतार-चढ़ाव को बेहतर तरीके से दिखा पाते हैं। कोर्टरूम की पर्दाहट, भीड़ के बीच के दृश्य, व्यक्तिगत संवादों की क्लोज़-अप शॉट्स आदि असरदार हैं।


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### दर्शकों की प्रतिक्रिया और बॉक्स ऑफिस


* रिलीज होते ही दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ सकारात्मक हुई हैं। सोशल मीडिया पर लोग फिल्म के हास्य, संवादों और अक्षय-अर्शद की केमिस्ट्री की तारीफ कर रहे हैं। ([The Times of India][3])

* बॉक्स ऑफिस की शुरुआत मजबूती से हुई है। पहले दिन की कमाई और प्री-बुकिंग आदि संकेत दे रहे हैं कि फिल्म कम नहीं चलने वाली है। ([The Times of India][3])


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### निष्कर्ष: हाँ देखा जाए या नहीं?


“Jolly LLB 3” एक अच्छी कोशिश है उन फिल्मों में जो मनोरंजन के साथ सामाजिक संदेश भी देना चाहती हैं। अगर आप कोर्टरूम ड्रामा, कॉमेडी और सामाजिक मुद्दों की झलक पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए है।


यह पूरी तरह से खराब नहीं है: लंबाई, कुछ पूर्वानुमेय मोड़ और महिला पात्रों का सीमित विकास जैसे कुछ मुद्दे हैं, लेकिन ये फिल्म की ताकतों को कम नहीं करते। अभिनेता और संवाद मुख्य आकर्षण हैं, और फिल्म का अंत, जो न्याय की उम्मीद जगाता है, दर्शकों को प्रभावित करता है।


अगर मैं रेटिंग दूँ, तो **3.5/5** कहना ठीक लगेगा — एक ठोस, मनोरंजक और सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म।